Sunday, March 8, 2009

"माँ"

अपने रक्त से सिंचित करके माँ नें हमको जनम दिया ,
गर्भावस्था से ही उसने संस्कारों का आधार दिया |
सर्वप्रथम जब आँख खुली तो मुख पे माँ ही स्वर आया ,
दुनिया में किस बात का डर जब सिर पर हो माँ का साया||

पहला स्वर सुनते ही उसने छाती से अमृत डाला,
अपने वक्षस्थल में रखकर ममता से उसने पाला |
प्रथम गुरु है माँ ही अपनी उससे पहला ज्ञान मिला,
माँ का रूप है सबसे प्यारा सबसे उसको मान मिला ||

नारी के तो रूप अनेकों भगिनी रूप में वो भाती ,
संगिनी रूप में साथ निभाकर मातृत्व से सम्पूर्णता पाती |
अपरम्पार है माँ की महिमा त्याग की मूरत वो कहलाती ,
उसके कर्म से प्रेरित होकर मातृ-भूमि पूजी जाती ||

माँ में ही नवदुर्गा बसती माता ही है कल्याणी ,
माँ ही अपनी मुक्तिदायिनी माँ का नाम जपें सब प्राणी |
माँ के चरणों में स्वर्ग है बसता करते सब तेरा वंदन,
तेरा कर्जा कभी न उतरे तुझको कोटिश अभिनन्दन ||

रचयिता ,
अम्बरीष श्रीवास्तव "वास्तुशिल्प अभियंता"
91/
९१, सिविल लाइंस सीतापुर , उत्तर प्रदेश , इंडिया ( भारतवर्ष )


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